गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

#Helping_Hand_for_freelance_Artists_during_lockdown
#लॉकडाउन_के_दौरान_फ्रीलांस_कलाकारों_की_सहायता
     कोरोना वायरस रूपी वैश्विक महामारी और उसके कारण लोगों को बचाने  की प्रक्रिया के तहत किया गया अखिल भारतीय लॉकडाउन ने यों  तो समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया है किन्तु निम्न वर्ग और दिहाड़ी मज़दूर सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। उनपर तमाम सरकारें ध्यान दे भी रही हैं। लेकिन कुछ ऐसे वर्ग के लोग भी हैं जिन पर  लोगों का ध्यान कम ही जाता है। फ्रीलांस कलाकार वर्ग उन्हीं में से एक है। ऐसे कलाकार  प्रतिदिन कही न कही कभी जागरण, कभी किसी बड़े कलाकार के साथ सहयोगी के रूप में, कभी विवाह, जन्मदिन, उत्सव विशेष में, कभी किसी पब तो किसी होटल आदि में भाग लेकर अपना जीवन यापन करते हैं।  इनमें अधिकांश के  पास न तो अपना घर है, न कोई नियमित आय के साधन।  इनके पास सरकारी सुविधा जैसे बी पी एल  आदि भी नहीं है।  इनमे बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो इस बंदी में बुनियादी चीज़ों के लिए भी तरस रहे हैं किन्तु कलाकार सुलभ आत्मसम्मान कहें या लोक- लाज, कहीं मदद भी नहीं मांग पाते। इस माहौल में याचना भी करें तो किससे? 
हमलोगों ने यह निर्णय लिया है कि  यथासंभव  उन कलाकारों को जिनको किसी भी तरह का नियमित सरकारी अथवा गैर सरकारी अनुदान, सहयोग, वेतन, भत्ता आदि नहीं मिल रहा है उनके लिए समाजसेवी, मानवीय मूल्यों को समझने और सम्मान देनेवाले लोगों, संस्थाओं,सरकारी विभागों और स्वयंसेवी संस्थाओं के सहयोग से यथासंभव मदद करने का प्रयास किया जाएगा। हमें कितने कलाकारों के लिए व्यवस्था करनी है इस एस्टीमेट को जानने के लिए हम आप सभी सम्मानित ज़रूरतमंद कलाकारों के विवरण की अपेक्षा करते हैं। आप स्वयं अपना, अपने जानकार का और सहयोगियों के नाम इस मुहिम के तहत लाभ हेतु प्रस्तावित कर सकते हैं। पहले चरण में किसी कागज़ात की ज़रूरत नहीं है। केवल निम्न विवरण हमें उक्त मेल पर भेज दें। अहर्ता तय करने के बाद आपको सम्पर्क/सूचित किया जाएगा।
कृपया इस सन्देश को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि अधिकतम ज़रूरतमंद कलाकारों तक मदद पहुंचाई जा सके।
कला-क्षेत्र
-Theatre/Actor
-Puppet / Artist
-Instrumental  Music
- Vocal Music (Singing)
सबसे पहले इन कलाकारों से अथवा जो इनको जानते हैं उनसे निवेदन है कि  इनके बारे में निम्नलिखित जानकारी निम्न पते पर शीघ्र भेजें:
1 . नाम -----
2 . लिंग --
3 . विधा --
4 . पिता/पति का नाम:-
6.  मोबाइल नंबर :-
8 . निवास स्थान ( पता ):---
9 . आश्रितों की संख्या व विवरण:
उक्त विवरण दिनांक 21 अप्रैल 2020 तक मेसेंजर संदेश के माध्यम से भेजें। उसके बाद प्राप्त निवेदन के सहयोग में हमें परेशानी होगी।

नोट: कृपया केवल messenger में text भेजें। यहाँ कमेंट बॉक्स में या सोशल मीडिया के अन्य प्लेटफार्म्स पर प्रेषित न करें।

गुरुवार, 2 जून 2011

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

राठोड हंस रहा है. राठोड हंस रहा था. राठोड हँसता रहेगा. उसी तरह जिस तरह रावण त्रेतायुग से लेकर आज तक हंस रहा है. हर वर्ष रावण का पुतला जलाया जाता है. रामलीला में हर वर्ष राम रावण कि हत्या करते है उसका अंत करते है. लेकिन उसकी हंसी का अंत नहीं कर पाते. रावण का अट्टहास ही उसकी पहचान है. यदि रावण  न हँसे तो उसकी पहचान खो जाएगी. राठोर भी अट्टहास कर रहा है. राठौर प्रतीक है हमारे समाज के उस रावण का जिसकी हंसी हम बंद नहीं कर सकते. वह हंस रहा है क्योंकि वह जानता है कि कानून , समाज उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती. उसके पास सत्ता कि रावणी ताकत है. वह जानता है कि व्यवस्था की पूरी कमान ही जब रावणी शक्तियों के हाथ है . जब चपरासी से लेकर कलेक्टर तक भ्रष्ट और विवेकशून्य है तो फिर किसी की क्या मजाल कि उसका कुछ बिगाड़ सके. ऐसे रावन को मारने वाला राम अब पैदा नहीं हुआ करता. जब तक पूरा का पूरा समाज ऐसे रावणों की खिलाफ लामबंद नहीं होता अनेक रूचिकाए इसी तरह ख़ुदकुशी करती रहेंगी. 

शनिवार, 14 नवंबर 2009

तू पञ्जाबी , मै बिहारी .
कैसे करुँ मै तुझसे यारी.

किस्मत हाय कैसी पायी
मै मजदूर , तू. व्यवसायी

तू है लखपति , मै हूँ कंगला.
मेरी झुग्गी. तेरा बंग्ला.

मै हूँ नाला , तू मझधार ,
मेरी रिक्शा,तेरी कार

मेरी छठ है, तेरी लोहरी
नहीं जमेगी , अपनी जोड़ी.
                      गुंजन कुमार झा

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

24 ghante ka pyar

ये उस दिन की बात है जब मै किसी सांगीतिक कार्यक्रम के सिलसिले में गुवाहाटी जा रहा था. वो नवम्बर का महीना था . मै अपने मित्र रंधीर के साथ था. हमारी ट्रेन रात ११-३० की थी. रात्रि का भोजन करने के पश्चात् हम रेलवे स्टेशन पहुंचे और अपने ट्रेन का इन्तेजार करने लगे . हमारा टिकेट तत्काल में बना था और हमें पता था की हमारा डिब्बा संभवत सबसे अंत में होगा .  चूँकि हमने अलग अलग टिकेट बनाया था इसलिए हम दोनों का डिब्बा अलग अलग था. हम ने सोच रखा था की जो भी महाशय हमारे आस पास होंगे हम उनसे रिकुएस्त करके एक दुसरे के साथ हो जाएंगे. जब गाडी आ गयी तो हम जल्दी अपने डिब्बों की ओर लपके . मेरा जो डिब्बा था वो काफी साफ था किन्तु रंधीर वाली बोगी बिलकुल गन्दी थी . रंधीर ने तुंरत ही बोगी एक्सचेंज की पेशकश की . ये  सोच कर की रंधीर मेरे ही काम से गुवाहाटी जा रहा है इसलिए मुझे उसकी सुविधाओं का ख्याल रखना चाहिए , मैंने उसकी बात मान ली . शीट की गन्दगी असहनीय थी . मैंने चादर बिछाकर नींद के आगोश में चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. मै सोने को ही था कि सामने जो घट रहा था उसने आँखें खोलने पर मजबूर कर दिया . मेरे ठीक सामने कि शीट पर दो बहुत खूबसूरत किशोरी युवतियों का प्रवेश हुआ. उन के चेहरे पर यौवन,टूटकर आने कि मानो धमकी दे रहा था. मै खुश होने कि कोशिश कर ही रहा था कि मेरे ऊपर मानो ख़ुशी का पहाड़ ही टूट पड़ा . क्या देखता हूँ कि उनके पीछे उन जैसी ही करीब चालीस बालाओं ने प्रवेश किया. मै साइड अपर पर था. वहां से लगभग दो केबिंस कि किशोरियों का सौंदर्य निहारा जा सकता था. मगर आँखों कि पुतलियाँ जवाब दे रही थी. मै सो गया,
        रात को देर से सोया था इसलिए सुबह देर तक आँख नहीं खुली . आचानक उन किशोरियों के सामूहिक गान से मेरी नींद खुली. वो सभी आपस में अन्ताक्षरी खेल रही थी और मुझे ये समझने में अधिक देर न लगे कि वे सभी किसी पब्लिक स्कूल कि बारहवी कि छात्राएं है और अपने सालाना टूर पर सिलीगुडी सैर को जा रही हैं. वो आपस में ही अन्ताक्षरी खेल रही थी और उनके साथ एक शिक्षिका एवं एक शिक्षक जा रहे थे. वे सभी जो गीत गा रही थी उनमे अधिकतर या तो नए फ़िल्मी गीत थे अथवा पञ्जाबी गीत थे. उनमे से एक गीत और उसे गाने वाली एक किशोरी बार बार मेरा ध्यान अपनी ओर खींच रही थी. गीत के बोल थे - हाय नि सच्चा प्यार नियो मिलदा - और गाने वाली किशोरी का नाम था - प्रीती . मै ये गौर कर रहा था कि जिस तरह मै बार बार उसे ही देख रहा था उसी प्रकार वो भी मुझे ही देख रही थी . मै उससे कुछ बात तो करना चाह  रहा था किन्तु किसी बखेडे कि आशंका में मैंने उससे अपना धयान हटाया और अखबार खरीद  कर उसमे अपना धयान लगा लिया. मगर उसे शायद मेरा ध्यान हटाना मंजूर नहीं था . वो मिडिल में ऊपर कि शीट पर थी. निचे उतर कर आयी और बोली - एक्स्कुसे मी  क्या मै आपका पेपर देख सकती हूँ? मैंने उसे पास से देखा. बहुत सुन्दर नहीं थी . दांत थोड़े बेडोल से थे . थोड़े उठे हुए और थोडा पीलापन लिए हुए. चेहरे पर रात के न सोने का भारीपन भी था और साल ओढे होने के कारण शारीरिक शौष्ठाव भी अदृश्य था. वो बहुत साधारण लग रही थी . इतनी साधारण कि असाधारण सी थी. मै उसकी इस साधारणता के सौंदर्य में खो सा गया और उसके दोबारा पूछने पर ही मेरे तंद्रा टूटी . मैंने हडबडा कर उसे अखबार दे दिया और वो पुनः अपने स्थान पर पहुँच गयी. कुछ देर बाद एक पत्रिका वाले से मैंने एक एडल्ट और केवल पुरुषों हेतु प्रकाशित पत्रिका खरीदी . मैने उसे मोड़ के रख लिया कि जब ये लड़किया चली जाएंगी तब उसे पढूंगा मगर प्रीती का ध्यान मुझ पर ही था . अखबार लौटaने  आयी तो पत्रिका कि जिद करने लगी . मेरे ये कहने पर कि ये पत्रिका बच्चों के लिए नहीं है उसने आत्माभिमान से कहा - मै अठारह कि हो गयी हूँ. मैंने फटाफट पत्रिका को पलटा और ये तसल्ली करने के बाद कि उसमे कोई आपत्तिजनक तस्वीr नहीं है मैंने वो पत्रिका उसे दे दी . मै देख रहा था कि वो अपने सहेलियों के साथ-साथ उसे देखते हुए कनखियों से मुझे देख रही थी. किसी पन्ने पर किसी अश्लील तस्वीर को देख कर सभी एक साथ चिल्लाती . मै उनकी इन अल्हद्ताओं का अपने तरीके से आनंद ले रहा था किन्तु बात यही तक समाप्त होने वाली नहीं थी. मै प्रीती कि अदाओं से पूरी तरह ग्रसित हो रहा था . इसी दरमियाँ मैंने प्रीती को आधार मानकर एक बहुत खूबसूरत सा गीत लिखा .

सुबब से दोपहर और दोपहर से शाम हो गयी. सबने फिर अन्ताक्षरी कि राह ली . इस बार उनके साथ उनकी मैडम भी भाग ले रही थी. च अक्षर पर गीत गाते गुए - चन्दन सा बदन - वे अचानक ही सारे वोर्ड्स भूल गयी. और उनकी मदद हेतु मैंने निचे उतरकर उस गीत को पूरा किया . बस फिर क्या था सभी लड़कियां मेरे पास आकर और गीत गाने कि फरमाइश करने लगी. उनकी फरमाइश पूरी करने कि मैंने जीतोड़ कोशिश कि क्योंकि उनमे सबसे अधिक फरमाइश करने वाली स्वयं प्रीती थी .
         वक्त कटता गया और मै उसके आकर्षण में दीवाना होता गया . उसका हँसाना उसका देखना , उसका गाना , उसका सब कुछ ही मुझे गजब अच्छा लगाने लगा. मैंने उसे सोचते हुए और उसके प्रति अपने मन कि भावनाओं को व्यक्त करते हुए एक गीत कि रचना की . मै बहुत उत्साहित था. रात हो चली थी और देर रात ही करीब दो बजे उसे सिलीगुडी उतर जाना था. मै उस रात को जी भर के अपने में समा लेना चाहता था. इसलिए मै उससे बात करने को उत्सुक था. मगर डरा हुआ था और अकेला था. मेरी मुस्किल उसी ने आसान कर दी . रात के करीब नौ बजे जब मै गेट कि ओर रवाना हुआ ताकि थोडी ठंडी हवा खा सकूँ वो भी मेरे पीछे पीछे वहीँ आ गयी. उसने आते ही मुझ से मेरा गंतव्य पूछा और फिर मेरा नाम धाम पूछा . मैंने भी ऐसा ही किया. मैंने थोडी देर कि बातचीत में ही उसे जाता दिया कि वो मेरे लिए खाश है. मैंने उससे कहा कि मैं ने उसके लिए एक गीत लिखा है और मै उसे कुछ देना चाहता हूँ. उसने रात में अपने सर के सो जाने के बाद मुझ से बात करने एवं गीत सुनने कि इच्छा जताई . मै खाने के बाद बेसब्री से उसके सर के सोने का इन्तेजार कर रहा था. वे लगभग ग्यारह बजे सोये . उसके लगभग दस मिनट के बाद प्रीती अपनी एक अन्य सहेली के साथ मेरी शीट के पास वाली शीट पर आ गयी. मै धीमी अवाज  में गाने लगा और उसकी सहेलियों कि तादात बढती गयी. जब यह संख्या दस के करीब हो गयी तो मै समझ गया कि एकांत का इन्तेजार करना व्यर्थ है . प्रीती पर लिखा अपना पूरा गीत मैंने सुना दिया . गीत बहुत रोमांटिक हो गया था . ख़त्म होते ही सबने पूछा कि उस गीत कि प्रेरणा मुझे कहाँ से मिली और मैंने प्रीती कि और चाहत भरी निगाह से देखा. प्रीती का पूरा गाल शर्म के मारे लाल हो गया था. दोपहर तक एकदम अल्हड होकर गाने-नाचने वाली लड़की भी इतना शरमा सकती है,मुझे विस्वास नहीं हो रहा था. अब मेरा डर कुछ कम हो चला था. जब उस गीत पर ज्यादा ही वaह-वाही होने लगे तो उनके सर कि नींद खुल गयी और उन्होंने सबको तुंरत हलकी नींद सो जाने का आदेश दिया. प्रीती वही पर अपना चेहरा मेरी ओर किये लेटी  रही और उस अँधेरेमें बिना रौशनी हमने एक दूसरी का भली-भाँती दीदार किया.

जगजीत सिंह कि ग़ज़ल है -''सोचा नहीं अच्छा बुरा , देखा सुना कुछ भी नहीं. माँगा खुदा से रात-दिन तेरे शिवा कुछ भी नहीं . ''    इसी का अंतिम अन्तरा  है- ''एक शाम कि दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक . आँखों से कि बातें बहुत , मुह से कहा कुछ भी नहीं.'' ये ग़ज़ल अच्छी तो पहले भी लगाती थी.किन्तु पहली बार ये एहसास हुआ कि क्यों जगजीत ग़ज़ल के बादशाह है. हमारी आँखें ऊँघ रही थी मगर एक दुसरे से बातें कर रही थी. बातों का सिलसिला कुछ ऐसे खामोशी से चला कि पता नहीं मै कब नींद कि आघोष में चला गया.

मै हडबडा कर कच्छी नींद से जगा. मुझे लगा जैसे किसी ने मुझे अपने केहुनी से जगाया है. आचानक ही देखता हूँ. समूचा मंजर बदला हुआ है. वो सारा समूह सिलीगुडी उतरने हेतु गेट पर जा चूका था. मेरी निगाहे प्रीती को ढूंढ रही थी. तभी प्रीती का शाल लहराया और मैंने देखा प्रीती भी उतरने हेतु पंक्तिबद्छ है. मैंने प्रीती को हसरत भरी निगाग से देखा. vo vaapas मुड कर आयी और लगा जैसे कुछ कहना चाहती है . फौरन बोली - आप कुछ कहना चाहते थे ? तो कहिये और आप मुझे कुछ देना भी तो चाहते थे .जो भी करना है जल्दी कीजिये. तभी पीछे से उसकी सहेलियों कि हडबडाहट भरी आवाज़ आयी. अरे जल्दी करो सब उतरने को है. मेरा दिल धक् से बैठ गया. मेरे सपनों कि दुनिया मानो अभी तबाह होने जा रही थी. मै घबरा गया . उससे क्या कहता? तभी उसकी कोई सहेली उसे खींच कर ले गयी. और वो मुझे अजीब सी निगाहों से देखती हुई जाने लगी. मै बुझ सा गया और किसे चमत्कार का मानो इन्तेजार करने लगा. और मानो मेरे लिए चमत्कार हो भी गया जब आचानक ही  उसके सर चिल्लाये- अरे पगलियो गलत स्टेशन पर उतरने को क्यों बेताब हो? अभी सिलीगुडी आने में कमसेकम दो घंटे लगेंगे. मानो मेरे उखाडे हुए प्राण -पखुदु पुनः वापस जम गए. वो लगभग कूदती हुई वापस आयी. अब तो मै वो चीज आप से लेकर रहुंगे जो आप मुझे देना चाहते थे . मैंने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा- सच बताओ कि क्या तुम्हे बिलकुल भी अंदाजा नहीं कि मै तुम्हे क्या कहने वाला हु और क्या देने वाला हूँ.? उसने आँखे नीची करते हुए कहा- शायद पता है. तभी मनो पुनः भूचाल आया. उतरो-उतारो सिलीगुडी आ गया- सहेलियां चिल्लाईं. वो जाने को हुई . मैंने अपने हाथ में उस पर लिखा गीत और उसमे अपने दिल कि बात लिखी चिठी राखी हुई थी. मै उसे वह देने का सहस नहीं जुटा पा रहा था. मगर उसने पुनः मेरी मुस्किल आसन कर दी. मेरी हाथ कि वो चिठ्ठी उसने ऐसे ली मानो अपना उधर दिया पैसा ले रही है. स्टेशन पर उतर कर मैंने उसे उस ख़त को चूमते और सीने में छुपाते देखा. उसकी वो अलविदा कहती आँखे आज भी मेरे एकाकी जीवन में चुलबुलाहट का अहसास कराती रहती है.  

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

suro ke rahee


सुर का मामला बाकी सभी चीजो से जुदा होता है . संगीत सिखाने का मेरा तजुर्बा यही कहता है की जब भी आप किसी को संगीत सिखाते है तो आप उससे अलग तरह का रिश्ता कायम करते है. यह रिश्ता आपको दुनियावी रिस्तो से बिलकुल अलग तरह का अहसास दिलाता है. गुरु और शिष्य का रिश्ता संगीत में जिन अर्थो में लिया जाता है हमेशा वैसे ही रिश्ते नहीं बनते क्योकि प्रायः आपको एक निश्चित समय के लिए कुछ चुनिन्दा व्यक्तियों को तैयार करना होता है . ऐसे में वह रिश्ता गुरु शिष्य का रिश्ता तो नहीं कहा जा सकता . तो फिर वो कौन सा रिश्ता हुआ? मेरे ख्याल से वह और कुछ नहीं सुरों का रिश्ता है. इस रिश्ता में एक अलग तरह की बानगी होती है.

                 मै आजकल छात्रों के एक समूह को नृत्य और संगीत के एक बड़े समारोह हेतु तैयार कर रहा हूँ. इसमें तीन बड़े विद्यालयों की लगभग सत्तर छात्राए शामिल है . इनमे कुछ तो मेरे संदर्भित विद्यालय की ही है . बांकी अन्य पडोसी विद्यालयों की है. उन्हें संगीत हेतु तैयार करते हुए मैंने पाया की उनसे मुझे एक अलग तरह का लगाव हो गया है. मुझे फी उतनी ही मिलनी है जीतनी पहले से तय है किन्तु मै संगीत अभ्यास को ड्यूटी की तरह नहीं कर के यज्ञ की तरह कर रहा हूँ. मेरा रवैया कोच का नहीं रह गया है बल्कि मै दिल से ये चाहता हूँ की वे सबसे बेहतर प्रदर्शन करे . इसके लिए चाहे मुझे जितनी भी मेहनत करनी पडे .मै करूँगा. कुछ छात्राए तो बहुत सुर में होने के साथ ही साथ बहुत समर्पित भी है . ऐसा लगता है मानो मै इस विशाल सत्तर छात्रों से सुरों का अद्भुत रिश्ता रखता हूँ. जिसका सौभाग्य केवेल कलाकारों को ही प्राप्त है.

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

सबसे पहले उन सभी तिप्प्निकर्ताओं का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मुझ नाचीज को पढ़ने की जहमत उठाई।
मै एक साधारण घर से ताल्लुक रखता हूँ और मेरा सारा का सारा दिन मोटर साईकिल पर गुजरता है । सडको मेरा सामना चौपायों(cars) से होता रहता है। दुपहिया वाहनों के प्रति उनके मन में जरा भी दया नही होती और वे बिल्कुल बेतकल्लुफी से वहां चलते है । इससे कई बार हमारी जान को बन आती है। एक तो वैसे ही दुपहिया चलाना शहरों में खतरनाक है ऊपर से कार वालो का भी उत्पात रहता है । मेरे ख्याल से बड़ी गाड़ी के साथ बड़ी जिम्मेदारिय्पो कोभी सीख ही लेना चाहिए ।